DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
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सूत्र :घ्राण-रसनचक्षुस्त्वक्श्रोत्राणीन्द्रियाणि भूतेभ्यः II1/1/12
सूत्र संख्या :12

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : जिससे गन्ध, रूप, रस, स्पर्श और शब्द का ज्ञान होता है, वे क्रमशः घ्राण (कान) कहलाते हैं।

व्याख्या :
प्रश्न-इन्द्रिय का लक्षण कहो ? उत्तर-जो अपने विषय को ग्रहण कर सके। प्रश्न - यह इन्द्रियां किन से उत्पन्न होती हैं ? उत्तर-पच्च भूत से अर्थात् अग्नि से आंख, पृथ्वी से नाक, वायु से खाल, पानी से रसना और आकाश से कान उत्पन्न हैं और यह पांचो इन्द्रियां अपने-अपने विषय ग्रहण करते हैं। प्रश्न-भूत किसे कहते हैं या कौन से हैं ?

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