सूत्र :उपपत्तिकारणाभ्यनुज्ञानादप्रतिषेधः II5/1/26
सूत्र संख्या :26
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जब कि प्रतिवादी दोनों के कारणों की उत्पत्ति को स्वीकार कर चुका है, फिर वह अनित्यता के कारण का खण्डन किस प्रकार कर सकता है। यदि परस्पर विरोध से एक का निषेध माना जावे, तो विरोध दोनों में बराबर है। फिर दो में से एक की सिद्धि वह क्यों कर सकेगा ? अब उपलब्धिसम का लक्षण कहते हैं:-