सूत्र :कारणान्तरादपि तद्धर्मोपपत्तेरप्रतिषेधः II5/1/28
सूत्र संख्या :28
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जबकि दूसरे कारणों से भी उसका धर्म का प्रकट होना सम्भव है, इसलिए यह प्रतिषेध अयुक्त हैं क्योंकि प्रयत्न से उत्पन्न होने का प्रयोजन यह है, कि वह कारण से उत्पन्न होता है, चाहे चेतन के प्रयत्न से चाहे जड़ के, परन्तु उसका कारण अवश्य है और जिसका कारण है यह अनित्य है। इससे प्रयत्न जन्म होने का खण्डन नहीं होता और नहीं शब्द के अनित्यत्व का खण्डन होता है। और यह माना कि शब्द बोलने से उत्पन्न नहीं होता किन्तु पहले मौजूद था, वही प्रकट होता है, केवल आवरण दर हो जाता है, ठीक नहीं। क्योंकि यदि कोई आवरण होता तो वह आंखों से दीखता है। किसी आवरण के प्रत्यक्ष न होने से यह मानना पड़ता है कि शब्द उच्चारण से पहले नहीं था और जब उच्चारण से उत्पन्न हुआ तो वह अनित्य है। अब अनुपलब्धिसम का लक्षण कहते हैं:-