सूत्र :साध्याविशिष्टः साध्यत्वात्साध्यसमः II1/2/49
सूत्र संख्या :49
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : वह हेतु जो स्वंय हेत्वन्तर की अपेक्षा रखता हो और उभय पक्षासम्मत हो किसी का हेतु नहीं हो सकता, क्योंकि सन्देह के निराश करने के लिए विश्वास होना आवश्यक हैं और ऐसे हेतुओं से जो स्वंय प्रमाणान्तर चाहते हों सन्देह के हृास के स्थान पर उसकी वृद्धि होती है।जैसे किसी ने कहा, छाया द्रव्य है। हेतु कहा कि गतिमान होने से अब छाया गति मती वस्तु है या नहीं यह स्वंय प्रमाणान्तर की अपेक्षा रखती है। जब तक यह सिद्ध न हो ले कि छाया चलती है या पुरूष । तब तक इस हेतु से छाया का द्रव्य होना सिद्ध नहीं होता । प्रथम तो छाया के द्रव्यत्व में संशय था अब छाया के गतिमत्वागतिमत्व विषयक विवादान्तर आरम्भ हो गया, और यह बात प्रसिद्ध है कि जितना प्रकाश और वस्तु के मध्य अवरोध होता है उतनी ही छाया होती है। अतः छाया का चलना भी भ्रम है और जो हेतु भ्रामक हो वही आभास रूप है।
प्रश्न-कालातीत हेत्वाभास किसे कहते हैं ?