DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
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सूत्र :सम्भवतोऽर्थस्यातिसामान्ययोगादसम्भूतार्थ-कल्पना सामान्यच्छलम् II1/2/54
सूत्र संख्या :54

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : जो अर्थ शब्द के सामान्यतया सम्भव हों उनके संसर्ग से असम्भव कार्यों की कल्पना करके विवाद करना सामान्यछल कहलाता है अर्थात् एक शब्द के साधारण अर्थों को लेकर वक्ता के अभिप्राय के प्रतिकूल भिन्न स्थानों पर उसका अन्वेषण करना छल है, जैसे एक पुरूष कहता है कि ब्राह्मण विद्वान् है तो हर एक लड़के को विद्वान् होना चाहिए क्योंकि विद्वता ब्राह्मण का गुण मान लिया गया है। अब वक्ता के मनोभाव के विरूद्ध युक्ति उत्पन्न की गई क्योंकि वह अधीत विद्य ब्राह्मण को विद्वान बतलाता था। अब यह उसके प्रतिकूल हर एक ब्राह्मण वंशज में विद्वता का गुण ढ़ूंढते हैं जिससे वक्ता के तात्पर्य को सर्वथा मिथ्या बनाना अभिप्रत है। क्योंकि ब्राह्मण का सविद्य होना तो संभव है परन्तु हर एक ब्राह्मण का विद्वान होना असम्भव है। वक्ता ने तो युक्त बात कही थी जिसका होना सम्भव था। अब छल करने वाले ने सर्वथा उसके अभिप्राय के विरूद्ध परिणाम निकाला वह जिस गुण को ब्राह्मण में बतला रहा था।यह छल करने के लिए उस गुण को हर ब्राह्मण में ढूंढने लगा और इस धोखे से उसके वचन को असत्य सिद्ध करना चाहा, इस प्रकार के छल का नाम ‘सामान्य छल’ है। प्रश्न-उपचार छल किसे कहते हैं ?

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