सूत्र :अविशेषाभिहितेऽर्थे वक्तुरभिप्राया-दर्थान्तरकल्पना वाक्छलम् II1/2/53
सूत्र संख्या :53
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जहां एक शब्द के दो अर्थ हों, वहां वक्ता के अभिप्राय के विरूद्ध अर्थों को लेकर उसका खण्डन करना वाक्छल कहलाता है। जैसे किसी ने कहा कि यह लड़का नव कम्बल वाला है। नव शब्द के दो अर्थ हैं एक तो नूतन, और और दूसरे नौ (संख्या) अब कहने वाले का अभिप्राय तो यह था कि इस लड़के का कम्बल नूतन है, तो विपक्षी ने खण्डन के लिए कहा कि इसके पास तो एक कम्बल है, नौ नहीं है। इसलिए तुम्हारा कहना असत्य है। यहां पर नव शब्द के दो अर्थ होने के कारण वक्ता के विरूद्ध अभिप्राय का तिरोधान करके धोखा दिया गया और विरोधी का धोखा देना स्पष्ट अनुचित है यही वाक्छल कहलाता है इस प्रकार की और बहुत-सी मिसालें हैं जो अधिकतया विवादों में सुनने में आई है। बहुत से वादी ठीक उदाहरण को अपने मत के प्रतिकूल देखकर मिथ्या सिद्ध करने के लिए इसी प्रकार के वाक्छल का प्रयोग किया करते हैं जिससे उनकी निर्बलता का ज्ञान विलक्षण लोगों पर तो हो जाता है परन्तु साधारण लोग उनकी धूत्र्तता के धोखे में आ जाते हैं क्योंकि जब लड़के के पास एक ही कम्बल है तो उसका ‘नव’ शब्द से नूतन को छोड़कर और क्या अभिप्राय हो सकता है। इस बात को समझ कर भी ‘नव’ के नौ अभिप्राय हो सकता है। इस बात को समझकर भी ‘नव’ के नौ (संख्या) अर्थ को लेकर आक्षेप करना नितान्त छल नहीं तो और क्या है। इसी प्रकार के धोखे को वाक्छल कहते है।
प्रश्न-सामान्य छल किसे कहते हैं ?