सूत्र :साधर्म्यवैधर्म्योत्कर्षापकर्षवर्ण्यावर्ण्यविकल्पसाध्यप्राप्त्यप्राप्तिप्रसङ्गप्रतिदृष्टान्तानुत्पत्तिसंशयप्रकरणहेत्वर्थापत्त्यविशेषोपपत्त्युपलब्ध्यनुपलब्धिनित्यानित्यकार्यसमाः II5/1/1
सूत्र संख्या :1
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अथ पञ्चमाध्याये प्रथमान्हिकम्
पहले अध्याय में दिखला चुके हैं कि साधर्म्य और वैधर्म्य भेद से अनेक प्रकार की जाति होती हैं, जिनका सविस्तार वर्णन इस अध्याय में किया जाता है। जातियों के निम्नलिखित 24 भेद हैं:-
1) साधर्म्यसम (2) वैधर्म्यसम (3) उत्कर्षसम (4) आकर्षसम (5) बण्र्यसम (6) अवण्र्यसम (7) विकल्पसम (8) साध्यसम (9) प्राप्तिसम (10) अप्राप्तिसम (11) प्रसड्डसम (12) प्रतिदृष्टान्तसम (13) अनुत्पत्तिसम (14) संशयसम (15) प्रकरणसम (16) हेतुसम (17) अर्थापत्तिसम (18) अविशेषसम (19) उपपत्तिसम (20) उपलब्धिसम (21) अनुपलब्धिसम (22) नित्यसम (23) अनित्यसम (24) कायसम। ये 24 जातिभेद हैं अर्थात् एक प्रकार के दोष हैं जो विपक्ष के खण्डन में दिए जाते है। जो कि ये साधम्र्यादि का ममता से उत्पन्न होते हैं, इसलिए इन सबके अन्त में ’सम’ शब्द दिया गया है। इनका लक्षण आगे क्रमशः सूत्रकार ही करते है। प्रथम साधम्यसम और वैधर्म्यसम का लक्षण:-