सूत्र :न कारणावयव-भावात् II4/1/42
सूत्र संख्या :42
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : कारण कार्य का एक अवयव है कि समष्टि व्यष्टि से पृथक नहीं, क्योंकि जो गुण समष्टि में होते हैं, वही उसकी व्यष्टि में भी होते हैं। इसलिए एक का निषेध नहीं हो सकता। क्योंकि सब कार्य एक ही कारण के अवयव हैं, इसलिए वे उससे पृथक नहीं। अब इसका खण्डन करते हैं।