DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
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सूत्र :निरवयवत्वादहेतुः II4/1/43
सूत्र संख्या :43

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : जब कि कारण सूक्ष्म होने से निरवयव है, तब कार्य को कारण का अवयव मान कर एक कारण को सिद्ध करना अयुक्त है। क्योंकि जब कारण के अवयव ही नहीं होते, तब उन सब को मिला कर एक पदार्थ कैसे हो सकेगा?

व्याख्या :
प्रश्न- यदि हम कारण को सावयव मानें, तब तो ऐसा हो सकता है। उत्तर- सावयव पदार्थ संयुक्त होने से अनित्य होते हैं अर्थात् किसी समय विशेष में उनकी उत्पत्ति होती है और जब उत्पत्ति तो विनाश भी अवश्य होगा। क्योंकि एक तट वाली नदी हो नहीं सकती।इसलिए तुम कारण को सावयव मानोगे तो वह अनित्य होगा। परन्तु कारण नित्य होने से सदा रहता है। अतएव उसका एक होना प्रमाण और युक्ति के विरूद्ध है। जब एक नहीं तो दो, तीन या चार आदि की संख्या नियत करना भी ठीक नहीं। प्रेत्यभाव की परीक्षा समाप्त हुई। अब आगे फल की परीक्षा की जाती हैः

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