सूत्र :न स्वभावसिद्धिरापेक्षिकत्वात् II4/1/39
सूत्र संख्या :39
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : अपने भाव की सिद्धि आपेक्षिक होने से बिना एक-दूसरे की अपेक्षा के सिद्ध नहीं हो सकती। क्योंकि जैसे छोटे की अपेक्षा बड़ा और बड़े की अपेक्षा छोटा सिद्ध होता है, वैसे ही घट की अपेक्षा पट और गौ की अपेक्षा अश्व की सिद्धि होती है। इसलिए बिना दूसरों की अपेक्षा के स्वतः किसी भाव की सिद्धि नहीं हो सकती। अब इसका उत्तर देते हैं-