सूत्र :सर्वमभावो भावेष्वितरेतराभावसिद्धेः II4/1/37
सूत्र संख्या :37
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : सब कुछ अभाव है, क्योंकि भावों में परस्पर अभाव की सिद्धि होती है। जैसे घड़े में कपड़े का अभाव है और कपड़े घड़े का। गौ में घोड़े का अभाव है और घोड़े में गौ का। जब भाव में एक दूसरे का अभाव सिद्ध है तब सबका अभाव ही क्यों न मान लिया जाय? अब इसका खण्डन करते हैं-