सूत्र :न स्वभावसि-द्धेर्भावानाम् II4/1/38
सूत्र संख्या :38
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : संसार में जितने पदार्थ हैं, वे सब अपने-अपने भाव से वर्तमान हैं, उनमें अपने से भिन्न पदार्थों का भाव न होना उनके भाव का निषेधक नहीं हो सकता, प्रत्युत साधक है। यदि घट में पट का अभाव है तो घट का तो भाव है घोड़ा गाय नहीं तो घोड़ा है, फिर भाव से अभाव की सिद्धि कैसे होगी? अतएव सब पदार्थों में अपना-अपना भाव होने से अभाव किसी का नहीं हो सकता। वादी फिर आक्षेप करता हैः