सूत्र :न व्यवस्थानुपपत्तेः II4/1/33
सूत्र संख्या :33
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : सबको नित्य मानने से यह उत्पत्ति होती है, यह विनाश है, यह व्यवस्था नहीं रह सकती। क्योंकि जब उत्पत्ति से पहले वह पदार्थ विद्यमान है तो फिर उत्पत्ति किस की और कैसी? ऐसे ही नाश के पश्चात् उसके विद्यमान रहने पर नाश किसका और कैसा? न उत्पत्ति उत्पत्ति रहेगी और न विनाश रहेगा। इसके अतिरिक्त इन दोनों में काल का अन्तर भीनही रहेगा। अर्थात् कब उत्पत्ति हुई और कब विनाश होगा। इसकी कुछ व्यवस्था न रहेगी। इससे भूत और भविष्य दोनों कालों का लोप हो जायेगा, केवल वर्तमानकाल रहेगा। इसलिए अविद्यमान को रूप विशेष की प्राप्ति उत्पत्ति और स्वरूप हानि ही विनाश है। यही व्यवस्था युक्ति सिद्ध है। अब अनेक वादी आक्षेप करता हैः