सूत्र :सर्वं पृथग्भावलक्षण-पृथक्त्वात् II4/1/34
सूत्र संख्या :34
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्रत्येक पदार्थ पृथक-पृथक और अनेक हैं, किसी वस्तु की एक सत्ता नहीं, क्योंकि भाव के लक्षण पृथक-पृथक हैं। जैसे कुम्भ यह पदार्थ गन्ध, रस, रूप, स्पर्श तथा कपाल घट, पाश्र्व ग्रीवा आदि अनेक पदार्थों का समुदाय होने से उन सबका वाचक है, किसी एक वस्तु का नहीं, ऐसे ही अन्य पदार्थो को भी समझना चाहिए। इसलए जाति, आकृति और व्यक्ति भी कोई एक पदार्थ नहीं सूत्र का अभिप्राय यह है कि सिवाय गुणों या अवयवों के कोई गुणी या अवयवी नहीं। इसका खण्डन करते हैं-