सूत्र :आत्मनित्यत्वे प्रेत्यभावसिद्धिः II4/1/10
सूत्र संख्या :10
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : आत्मा के नित्य होने से ही प्रेत्यभाव (पुनर्जन्म) का होना सिद्ध होता है। यदि आत्मा नित्य न होता तो पुनर्जन्म किसी प्रकार सिद्ध नहीं हो सकता था। प्रेत्यभाव का अर्थ ही यह है कि एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में जाना। यदि आत्मा अनित्य होती तो शरीरके साथ हीव नष्ट हो जाना, फिर उसकी उत्पत्ति कैसे हो सकती थी। किन्तु जो उत्पन्न होता, वह नया उत्पन्न होता, क्योंकि उसी आत्मा का पुनर्जन्म कैसा?
व्याख्या :
प्रश्न-यदि हम पुनर्जन्म का आश नाश और नवीन जन्म की उत्पत्ति तो क्या हानि है।
उत्तर- इस दोष में कृत हानि और अकृताभ्यागम दोष होगा अर्थात् जिसने कर्म किये हैं, उसको तो फल नहीं मिलेगा, जिसने नहीं किये उसको सुख दुःखादि मिले। इसलिए ऐसा मानना ठीक नहीं, क्योंकि जो करता है, वही भोगाता है। सजातीय कारण से कार्योंत्पत्ति होती है या विजातीय कारण से? इसका उत्तर देते हैं-