सूत्र :नैकप्रत्यनीकभावात् II4/1/4
सूत्र संख्या :4
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : रागादि दोषों के तीन भेद मानना ठीक नहीं, क्योंकि तीनों प्रकार के दोष एक ही तत्त्व ज्ञान के विरोधी हैं या एक ही तत्त्व ज्ञान इन सबका विरोधी और नाशक है। यदि इनके तीन भेद माने जावे तो फिर इनके प्रतिद्वन्द्वी भी तीन ही होने चाहिएं। जोकि प्रतिद्वन्द्वि इनका एक है, इसलिए इनमें भी भेद न होना चाहिए। इसका उत्तर देते हैः-