सूत्र :तेषां मोहः पापीयान्नामूढस्ये-तरोत्पत्तेः II4/1/6
सूत्र संख्या :6
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : इन सब दोषों का मूल मोह है, जिसको मोह नहीं रहता, उसको राग द्वेष भी होते। तत्त्व ज्ञान से मोह का नाश होता है, मोह के ने रहने पर राग द्वेष की उत्पत्ति ही नहीं होती, क्योंकि कारण के नाश से कार्य की उत्पत्ति नहीं होती। इसलिए मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु मोह है। अहित से अनुराग और हित से द्वेष ये दोनों मोह के कारण है। तत्त्व ज्ञान इसी मिथ्या ज्ञान का विरोधी है, अतएव मिथ्याज्ञान के निवृत होते ही राग और द्वेष की उत्पत्ति ही नहीं हो सकती इसलिए मोह तीनों में प्रधान है। वादी आक्षेप करता हैः-