सूत्र :व्यभिचारादहेतुः II4/1/5
सूत्र संख्या :5
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : व्यभिचार युक्त होने से उक्त हेतु अहेतु है। क्योंकि श्याम, हरित, पीतादि वर्णो का एक अग्नि विरोधी है, जो इन सबकों जलाकर नष्ट कर देता है, एक अग्नि के विरोधी होने पर भी ये सब पृथक्-पृथक् हैं। ऐसे ही एक तत्त्व ज्ञान के विरोधी होने पर भी रागादि दोष भिन्न-भिन्न एक नहीं हो सकते। अब इन तीनों में मोह की प्रबलता दिखलाते हैं-