सूत्र :तत्त्रैराश्यं रागद्वेषमोहार्थान्तरभावात् II4/1/3
सूत्र संख्या :3
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : दोष के तीन भेद हैं (1) रोग, (2) द्वेष, (3) मोह। ये तीन दोषों की राशि (समूह) हैं, इनमें से एक-एक के अन्तर्गत बहुत से दोष आ जाते हैं। जैसे राग के अन्तर्गत काम, मत्सर, स्पृहा, तृष्णा, माया, दम्भ और लोभ इत्यादि हैं। द्वेष के अन्तर्गत त्रोध, ईष्र्या, असूया, द्रोह अमर्ष अभिमान इत्यादि हैं। मोह के अन्तर्गत मिथ्याज्ञान, संशय, तर्क मान, प्रसाद, भय और शोकइत्यादि हैं। इनमें से राय प्रवृत्ति कारण है, द्वेष त्रोध का उत्पादक और मोह मिथ्या ज्ञान का कारण है। वादी आक्षेप करता हैः