सूत्र :यावच्छरीर-भावित्वाद्रूपादीनाम् II3/2/51
सूत्र संख्या :51
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : शरीर किसी दशा में भी रूपादि से रहित नहीं होता, किन्तु चेतनता से रहित शरीर देखा हैं, इससे सिद्ध होता है कि चेतनता शरीर का धर्म नहीं है। जैसे उष्णत्व जल का धर्म नहीं किन्तु अग्नि का है, उससे रहित जल हो सकता है, ऐसे ही चेतनता जो किसी अन्यका धर्म हैं, उससे रहित शरीर हो सकता है, यदि कहा जाय कि संस्कार सहित शरीर का धर्म हैं तो भी ज्ञान के न रहने और उसके कारण के बने रहने से ऐसा होना सिद्ध नहीं हो सकता। अब इस पर शंका करते हैं: