सूत्र :द्रव्ये स्वगुणपरगुणोपलब्धेः संशयः II3/2/50
सूत्र संख्या :50
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : द्रव्य में अपने गुण और दूसरे के गुण भी पाये जाते है। जैसे जल में द्रव्यत्व अपना गुण और उष्णत्व अग्नि का गुण पाया जाता है, ऐसे ही सब पदार्थों में कुछ गुण अपने होते है और कुछ अन्य पदार्थों के योग से आते है। अब यह सन्देह होता है कि शरीर में जो चेतनता मालूम होती हैं, यह उनका अपना गुण, या किसी अन्य पदार्थ का ? इसका उत्तर देते हैं: