सूत्र :त-ल्लिङ्गत्वादिच्छाद्वेषयोः पार्थिवाद्येष्वप्रतिषेधः II3/2/37
सूत्र संख्या :37
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पार्थिव, आप्य और आग्नेय आदि जितने शहरी हैं उनमें प्रवृत्ति और निवृत्ति का होना पाया जाता हैं, प्रवृत्ति और निवृत्ति इच्छा और द्वेष से होती है। बिना इच्छा के प्रवृत्ति और बिना द्वेष के निवृत्ति का होना असम्भव हैं, क्योंकि बिना कारण के कार्य नहीं होता। अतएव इच्छा द्वेष पार्थिवादि शरीरों के धर्म हैं। अब इसका खण्डन करते हैं: