सूत्र :परिशेषाद्यथोक्तहेतूपपत्तेश्च II3/2/42
सूत्र संख्या :42
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : मन, इन्द्रिय और शरीर के अचेतन होने से इच्छादि उनका धर्म नहीं हो सकते। अब उनसे शेष केवल आत्मा रह गया है। अतएव ये उसी के धर्म या गुण हैं।
व्याख्या :
जिन हेतुओं से आत्मसिद्धि की गई हैं, उन्हीं हेतुओं से आत्मा का नित्य होना भी सिद्ध होता हैं और नित्य होने के कारण ही आत्मा धर्म से स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति करता है और अधर्म से नरक और दुःख भोगता हैं, यदि आत्मा अनित्य होता तो शरीर के नष्ट होने पर उसका भी नाश हो जाता। इस पर हेतु देते हे: