DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
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Darshan

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सूत्र :आत्मप्रेरणयदृच्छाज्ञताभिश्च न संयोगविशेषः II3/2/32
सूत्र संख्या :32

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : शरीर के बाहर आत्मा और मन का संयोग तीन ही प्रकार से मानोगे। (1) या तो आत्मा अपनी इच्छा से शरीर के बाहर मन से संयोग करे, (2) या अचानक हो जाये, (3) या मन के ज्ञाता होने से हो। परन्तु ये तीनों प्रकार के सम्बन्ध असम्भव हैं (1) जब किसी वस्तु को जान कर आत्मा मन को प्रेरणा करेगा, तो इस दशा में प्रेरणा से पहले ही वह वस्तु स्मृति हो गई, फिर उसका स्मरण कैसा ? (2) अचानक स्मरण करना भी नहीं कह सकते, क्योंकि जब आत्मा किसी वस्तु को स्मरण करने की इच्छा करता हें, तभी उसका स्मरण होता हैं, (3)मन को चेतन (ज्ञाता) मानकर स्मरण की कल्पना करना भी ठीक नहीं, क्योंकि मन अचेतन और ज्ञान-रहित हैं। इसका समाधान करते हैं:-

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