सूत्र :न स्मरणकालानियमात् II3/2/31
सूत्र संख्या :31
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : . मन को शीघ्रगामी मानकर बाहर आत्मा के साथ भी उसका सम्बन्ध मानना ठीक नहीं। क्योंकि स्मरण करने का समय नित्य नहीं। अर्थात् कोई बात शीघ्र स्मरण हो आती है कोई देर से। जब कोई बात देर से स्मरण होती हैं तो स्मृति की इच्छा से मन सोचने लगता है और यह सोचना स्मृति का कारण होता है अर्थात् बहुत देर तक सोचने से स्मरण आता है। जब देर तक मन शरीर से बाहर आत्मा से संयुक्त हुआ सोचता रहता है, तब शरीर गिर पड़ना चाहिए और बिना शरीर के सम्बन्ध के केवल आत्मा और मन का सम्बन्ध स्मृति का कारण नहीं हो सकता, क्योंकि शरीर आत्मा के सुख-दुःख भोगने का स्थान हैं, उससे बाहर निकला हुआ मन आत्मा के सुख-दुःख का कारण नहीं हो सकता।
व्याख्या :
प्रश्न -यदि हम यह माने कि केवल आत्मा और मन के सम्बन्ध होने से ही सुख-दुःख का भोग होता है तो क्या हानि है ?
उत्तर - इस दशा में शरीर की कोई आवश्यकता ही न रहेगी, इसलिए जैसे सुखादि आत्मा के भीतर होने की दशा में ही अनुभव किये जाते हैं, ऐसे ही स्मृति भी आत्मा और मन के शरीर के अन्दर होने से ही होती है। इस पर और हेतु देते हैं:-