सूत्र :प्रातिभावत्तु प्रणिधाना द्यानपेक्षेस्मार्त्ते II3/2/35
सूत्र संख्या :35
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : कोई-कोई ज्ञान ऐसे हैं कि जिनमें चित्त की एकाग्रता या स्मत्र्तव्य लिंगों की अपेक्षा नहीं होती, किन्तु वे आकस्मिक होते हैं, जैसे प्रातिभ ज्ञान जो प्रतिभा (बुद्धि की स्फूर्ति) से उत्पन्न होता हैं, वह अकस्मात् ही उत्पन्न हो जाता है, इस प्रकार के आकस्मिक ज्ञानों की एक साथ उत्पत्ति हो सकती हैं, परन्तु इस अपवाद से सामान्य नियम में कोई बाधा नहीं आती।
अब जो लोग ज्ञान को आत्मा का और इच्छा, द्वेष, सुख और दुःख को अन्तःकरण का गुण मानते हैं, उनका खण्डन करते हैं: