सूत्र :ज्ञस्येच्छाद्वेषनिमित्तत्वादारम्भनिवृत्त्योः II3/2/36
सूत्र संख्या :36
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : ज्ञाता जिस वस्तु को अपने सुख का कारण समझता हैं, उसके प्राप्त करने की इच्छा करता है और जिसको दुःख का कारण जानता हैं, उससे वचना चाहता है। सुख-साधनों के प्राप्त करने और दुःख-साधनों के छोड़ने का प्रयत्न करता है। इसलिए ज्ञान, इच्छा, द्वेष, सुख, दुःख और प्रयत्न ये सब आपस में एक दूसरे से सम्बन्ध रखते हैं अर्थात् जिसको सुख के साधन का ज्ञान होगा, उसी को इच्छा होगी और वही उसके लिए यत्न करेगा। दुःखसाधन का ज्ञान होने पर द्वेष होगा, अतः इन सबका आधार केवल आत्मा ही है। इस पर वादी शंका करता हैं: