सूत्र :यथोक्तहेतुत्वात्पारतन्त्र्या-दकृताभ्यागमाच्च न मनसः II3/2/41
सूत्र संख्या :41
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, सुख, दुःख और ज्ञान ये 6 आत्मा के लिंग बतलाये जा चुके हैं और अनुमान तथा युक्तियों से इनका आत्म गुण होना सिद्ध किया गया हैं। साथ ही इसके शरीर, इन्द्रिय और मन के चेतन (ज्ञाता) होने का विषेध किया गया हैं। इस सूत्र में मन शब्द में षरीर इन्द्रिय और मन तीनों का ग्रहण होता है। उक्त हेतुओं से तथा मन के परतन्त्र होने से और अकृताभ्यागम दोष की आपत्ति से इच्छादि मन के धर्म नहीं हो सकते।
व्याख्या :
प्रश्न - अकृताभ्यागम दोष की आपत्ति कैसे होगी।
उत्तर -यदि इच्छादि मन के धर्म माने जायेंगे, तो इस जन्म में किसी अन्तःकरण ने स्वतन्त्रता से कोई कर्म किया, अब परजन्म में उसका फल दूसरे अन्तःकरण को भोगना पड़ेगा और यह अन्याय हैं। इसलिए आत्मा ही स्वतन्त्रता से मन आदि कारणों के द्वारा कर्म करता हैं और वही जन्मान्तर में इनका फल भोगता हैं, यही सिद्धान्त शास्त्र और युक्तिमूलक है। पुनः इसी की पुष्टि करते हैं-