सूत्र :स्मरतः शरीरधार-णोपपत्तेरप्रतिषेधः II3/2/29
सूत्र संख्या :29
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : शरीर की विद्यमानता में ही स्मृति होती है, यह मानना पड़ेगा कि शरीर के भीतर ही आत्मा और मन के सम्बन्ध से स्मृति होती हैं। यदि मन और शरीर व भीतर न होता तो शरीर की स्थिति कैसे होती ? आत्मा और मन के संयोग से जो प्रयत्न उत्पन्न होता हैं वह दो प्रकार का हैं, एक धारक दूसरा प्रेरक। धारक शरीर के धारण करता हैं, प्रेरक इन्द्रियों को प्रेरणा करता हैं। यदि मन का बाहर के आत्मा से सम्बन्ध होकर स्मृति उत्पन्न होती तो धारक शक्ति के न होने से बोझ के कारण शरीर गिर पड़ता, क्योंकि उस धारक शक्ति का आधार मन तो शरीर के बाहर हैं। इसलिए मन का आत्मा के साथ शरीर के भीतर ही सम्बन्ध होने से ज्ञान उत्पन्न होता है। इस पर फिर आक्षेप करते हैं:-