सूत्र :साध्यत्वादहेतुः II3/2/28
सूत्र संख्या :28
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : कर्मफल भोगने के लिए जो संस्कार हैं, यदि केवल संस्कार ही जीवन माने जावे और इन संस्कारों से युक्त आत्मा के भागों के साथ मन का सम्बन्ध होने से स्मृति उत्पन्न होती है तो कोई हेतु इसका कि शरीर के भीतर ही आत्मा और मन का सम्बन्ध होता है, बाहर नहीं, मौजूद नहीं है, इसलिए शरीर के भीतर ही आत्मा मन का संयोग होना साध्य हैं, फिर वह हेतु क्योंकर हो सकता हैं ? इसका उत्तर देते हैं ?