सूत्र :अनित्यत्वग्रहाद्बुद्धेर्बुद्ध्यन्तराद्विनाशः शब्दवत् II3/2/25
सूत्र संख्या :25
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : बुद्धि अनित्य हैं, इसको प्रत्येक विचारशील पुरुष जानता हैं, क्योंकि शब्द के तुल्य बुद्धि की उत्पत्ति और विनाश के कारण देखे जाते हैं, जैसे पहले उच्चारण किये हुए शब्द नष्ट और पिछले उच्चारित उत्पन्न होते हैं, ऐसे ही पहला ज्ञान नष्ट होकर पिछला उत्पन्न होता है। यदि बुद्धि नित्य होती तो कोई ज्ञान कभी नष्ट न होता, किन्तु सब ज्ञान काल में एक से बने रहते। ऐसा होने पर स्मृति और प्रत्यभिज्ञा इन सबका लोप को जाता। अतएव बुद्धि का अनित्य होना सिद्ध है। दूसरा वादी कहता है:-