DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
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सूत्र :विनाशकारणानुपलब्धेश्चाव-स्थाने तन्नित्यत्वप्रसङ्गः II3/2/24
सूत्र संख्या :24

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : बुद्धि अर्थात् ज्ञान के नाश होने का भी कोई कारण मालूम नहीं होता, इससे भी बुद्धि का नित्य होना ही सिद्ध होता है। यदि नित्य न हो तो फिर नित्य आत्मा का गुण कैसे हो सके ? गुण का नाश दो प्रकार से होता हैं, एक तो गुणी के नाश होने से, दूसरे गुणी में किसी विरोधी गुण के आ जाने से। जब बुद्धि आत्मा का गुण है तो न तो कभी आत्मा का नाश हो सकता है और उसके एक रस होने से उसमें कोई विरोधी गुण भी नहीं आ सकता। अतएव प्रतिवादी को या तो बुद्धि को नित्य मानना पड़ेगा या उसके आत्मगुण होने से इन्कार करना पड़ेगा। अब इसका उत्तर देते हैं:-

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