सूत्र :तदात्मगुणत्वेऽपि तुल्यम् II3/2/21
सूत्र संख्या :21
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जब ज्ञान सारे देह में रहने वाले आत्मा का गुण माना जावेगा, तो भी वहीं दोष आवेगा जो मन को विभु मानकर ज्ञान को उसका गुण मानने में आता है। क्योंकि आत्मा के सारे देह में व्यापक होने से सब इन्द्रियों के साथ एक समय में उसका सम्बन्ध होगा और ऐसा होने से एक साथ सब विषयों का ज्ञान होना चाहिए। इसका उत्तर देते हैं:-