सूत्र :क्वचिद्विनाशकारणानुपलब्धेः क्वचिच्चोपलब्धेरनेकान्तः II3/2/18
सूत्र संख्या :18
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : कहीं तो नाश के कारण का ज्ञान प्रत्यक्ष होता है, जैसा घटादि में देखा जाता हैं कि डण्डा या ईंट लगी और घड़ा फट गया और कहीं नाश का कारण प्रत्यक्ष नहीं होता, जैसे दूध के नाश का कारण इन्द्रियों से नहीं जाना जाता। इसलिए स्फटिकादि में उत्पत्ति और विनाश सिद्ध करने के लिए दूध और दही का दृष्टान्त देना अनेकान्त (व्याभिचार) होने से माननीय नहीं हो सकता। बुद्धि वृत्ति की अनेकता और अनित्यत्व सिद्धकरके अब यह विचार किया जाता है कि यह ज्ञान किसका गुण हैं ? जोकि ज्ञान इन्द्रिय और अर्थ के संबंध से उत्पन्न होता हैं, इसलिए प्रथम इसी का निषेध करते हैं कि ज्ञान इन्द्रियों का गुण हैं ?