सूत्र :आदर्शो-दकयोः प्रसादस्वाभाव्याद्रूपोपलब्धिवत्तदुपलब्धिः II3/1/49
सूत्र संख्या :49
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जैसे दर्पण और जल स्वभावस्वच्छ होने से नेत्ररश्मि को नहीं रोकते, ऐसे ही स्फटिकादि भी स्वच्छ स्वभाव होने से नेत्ररश्मि के बाधक नहीं होते। भित्ति आदि मलिन स्वभाव होने से रूकावट का कारण होते हैं।
व्याख्या :
प्रश्न- भित्ति आदि के मलिन स्वभाव और कांचादि के स्वच्छ स्वभाव होने का क्या कारण है?
उत्तर- सत्व, रज, तम प्रकृति के ये तीन गुण हैं, अग्नि से सत्वगुण प्रधान है, जल में रजस और पृथ्वी में तमस। अग्नि के परमाणु अधिक होने से कांचादि स्वच्छ स्वभाव है, पृथ्वी के परमाणु अधिक होने से भित्त्यादि मलिन स्वभाव हैं। दर्पणादि के समान आंख की ज्योति को क्यों माना जाये?