सूत्र :आदित्यरश्मेः स्फटिकान्तरेऽपि दाह्येऽविघातात् II3/1/47
सूत्र संख्या :47
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : सूर्य की किरणें कांचादि का आवरण होने पर भी दूसरी तरफ चली जाती हैं, जिसका प्रमाण आवरित पदार्थ का उष्ण हो जाना है। और देखिए एक बटलोई में पानी डालकर नीचे आग जला देते हैं तो आग की गरमी देगची के परदे से गुजर कर पानी में जाती है,इससे जाना जाता है कि तेज की किरणें सूक्ष्म होने से इन आवरणों से रूक नहीं सकतीं। जैसे सूर्य की किरणों को कुम्भादि का आवरण पानी में उष्णता पहुंचाने से नहीं रोक सकता, ऐसे ही आंख आंख की किरणों को भी कांचादि का आवरण दृश्य पदार्थ में जाने से नहीं रोक सकता। फिर आक्षेप करते हैं-