सूत्र :वीतरागजन्मादर्शनात् II3/1/25
सूत्र संख्या :25
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : आत्मा के नित्य होने में दूसरा कारण यह भी है, कि रामानुबद्ध जीव ही जन्म लेता है, वीतराग नहीं। राग जन्म का कारण हैं और यह बिना पूर्वाभ्यस्त संस्कारों के हो नहीं सकता। वह आत्मा पूर्व शरीर में अनुभव किये विषयों का स्मरण करता हुआ उनमें रक्त होता है, और यही जन्म का कारण है। तत्वज्ञान के निरन्तर अभ्यास से जब राग की वासनायें समूल नष्ट हो जाती हैं तब कारण के अभाव से कार्य जन्मादि का भी अभाव हो जाता है, इसी को मुक्तावस्था कहते हैं। इससे भी आत्मा को नित्य होना सिद्ध है। अब इस पर शंका करते हैं:-