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न्याय दर्शन-COLLECTION OF KNOWLEDGE
DARSHAN
दर्शन शास्त्र : न्याय दर्शन
 
Language

Darshan

Adhya

Anhwik

Shlok

सूत्र :प्रेत्याहाराभ्यासकृतात्स्तन्याभिलाषात् II3/1/22
सूत्र संख्या :22

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती

अर्थ : जन्म लेते ही बालक माता के स्तन को चूसने लगता हैं, इससे अनुमान होता है पहले जन्म के संस्कार उसको दूध पीना सिखला देते हैं, अन्यथा जब तक जीव को कोई बात सिखलाई न जावे, तब तक उसको उसका ज्ञान नहीं होता। जैसे हम लोग इस जन्म के अभ्यास से भूख लगने पर खाना खाते हैं, ऐसे ही उत्पन्न हुआ बालक पूर्वजन्म के अभ्यास से दूध पीता है, क्योंकि इस जन्म में तो अभी उसने अभ्यास किया ही नहीं।

व्याख्या :
प्रश्न -क्या जीव को बिना अभ्यास के स्वंयमेव किसी काम के करने का ज्ञान नहीं होता, सब बातों के सीखने की आवश्यकता होती हैं ? उत्तर -जीवात्मा को दो ही प्रकार से ज्ञान होता है, या तो प्रत्यक्ष से या स्मृति से, इनके सिवाय किसी बात को सीखने के नही जान सकता। प्रश्न -अनुमानादि से भी तो बिना सीखने के ज्ञान होता हैं, फिर कैसे कहते हो कि बिना प्रत्यक्ष या स्मृति के ज्ञान नहीं होता। उत्तर - अनुमान तो प्रत्यक्ष का ही शेष है और शब्द दूसरे से जाना जाता है, इसलिए वह शिक्षा के अन्तर्गत है। प्रश्न - जबकि हम पूर्व जन्म को ही नहीं मानते तो पूर्व जन्म के अभ्यास को (जो अभी साध्यपक्ष में है) हेतु ठहराना साध्यसमहेत्वाभास है। उत्तर - पूर्व जन्म को हमने हेतु में नहीं रखा है, हेतु तो जन्म लेते ही बालक का दूध पीने लगता है, जिससे कोई नास्तिक भी इन्कार नहीं कर सकता। हां इस हेतु से साध्य पूर्व जन्म की सिद्धि अवश्य होती है। वादी फिर आक्षेप करता हैं:-