सूत्र :नोष्णशीतवर्षाकालनिमित्त-त्वात्पञ्चात्मकविकाराणाम् II3/1/21
सूत्र संख्या :21
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जो कमल के फूल का दृष्टान्त आत्मा से दिया गया है, वह ठीक नहीं, क्योंकि फूल आदि पच्चभूतों का विकार है, उनमें उष्ण शीत और वर्षा ऋतुओं के कारण विकार उत्पन्न होते हैं, आत्मा भौतिक नहीं हैं, जो कालका प्रभाव उन पर पड़ सकें। इसलिए यह दृष्टान्त ठीक नहीं। अथवा पद्मादिकों में भी प्रबोधादि विकार निर्निमित नहीं है सर्दी गर्मी और वर्षां आदि का होना ही उनका निमित्त है, इसी प्रकार आत्मा के हर्ष शोकादि का निमित्त पूर्वाभ्यस्त संस्कार हैं। जैसे बिना सर्दी-गर्मी आदि निमित्तों के पद्मादि में प्रबोधादि विकार नहीं हो सकते, वैसे ही बिना पूर्वाभ्यास संस्कारों के तत्काल जन्मे बालक में हर्ष शोकादि भी नहीं हो सकते। अतएव आत्मा नित्य है, इसी की पुष्टि में दूसरा हेतु देते हैं:-