सूत्र :पूर्वाभ्यस्तस्मृत्यनुबन्धाज्जातस्य हर्षभयशोकसम्प्रतिपत्तेः II3/1/19
सूत्र संख्या :19
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : पहले जन्म के अभ्यास से जो सद्योजात बालक के हृदय में हर्ष, भय और शोक उत्पन्न होते हैं, उससे जीवात्मा का जन्म से पूर्व होना सिद्ध होता है। क्योंकि इस जन्म में तो उसने इनके कारणों को अनुभव ही नहीं किया। बिना किसी वस्तु को देखे या अनुभव किए उसकी स्मृति नहीं हो सकती। जब अभी तक उसने सुख-दुःख या भय के कारणों को अनुभव ही नहीं किया तो उस पर इनका प्रभाव क्यों पड़ता हैं ? इसका कारण सिवाय पूर्वजन्म के अभ्यास के और कोई नहीं हो सकता अतएव आत्मा नित्य है। अब इस पर शंका करते हैं:-