सूत्र :नात्मप्रतिपत्तिहेतूनां मनसि सम्भवात् II3/1/16
सूत्र संख्या :16
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जो हेतु तुमने आत्मा की सिद्धि में दिए हैं, उनसे मन की सिद्धि होती है, न कि भिन्न-भिन्न अर्थों का ज्ञान या एक अर्थ का ज्ञान और फिर उनका प्रतिसन्धान यह सब काम मन कर सकता है, फिर देहादि से भिन्न आत्मा के मानने की क्या आवश्यकता हैं ? इसका समाधान करते हैं:-