सूत्र :अपरिसंख्यानाच्च स्मृतिविषयस्य II3/1/15
सूत्र संख्या :15
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : वादी ने यह जो कहा था कि स्मर्तव्य विषय ही स्मृति का कारण हैं, यह ठीक नहीं क्योंकि स्मर्तव्य विषय असंख्य हैं, इसलिए वे स्मृति का कारण नहीं हो सकते।
व्याख्या :
प्रश्न - स्मृति विषय किसे कहते हैं ?
उत्तर - स्मृति चार प्रकार की है। (1) मैंने इस पदार्थ को जाना, (2) मैं इसका जानने वाला हूं, (3)मुझसे यह पदार्थ जाना गया, (4)मुझे यह ज्ञान हुआ, यह जो चार प्रकार का परोक्ष ज्ञान है यही स्मृति का मूल हैं, इन चार प्रकार की स्मृति में सर्वत्र ज्ञान का सम्बन्ध ज्ञाता और ज्ञेय दोनो से है। यह ज्ञान न तो बिना ज्ञाता के रह सकता है और न अनेक ज्ञाताओं से इसका सम्बन्ध है किन्तु एक ही ज्ञाता ज्ञेय पदार्थों के अनुरोध से अपने सम्पूर्ण ज्ञानों का प्रतिसन्धान करता है। ‘मैनें इस बात को जाना, मैं इस बात को जानता हूं और मैं इसको जानूंगा‘ इन तीनों कालों के ज्ञान का प्रतिसन्धान यदि ज्ञाता न हो तो नहीं हो सकता। यदि इसको केवल संस्कारों का फैलाव मात्र हो माना जावे, प्रथम तो संस्कार उत्पन्न होकर विलीन हो जाते हैं, दूसरे कोई संस्कार ऐसा नहीं हैं, जो तीनों काल के ज्ञान को अपने में धारण कर सके। बिना ज्ञाता के संस्कार से ‘मैं और मेरा‘ यह ज्ञान उत्पन्न ही नहीं हो सकता। अतएव स्मृति विषय के अपरिसंख्येय और आत्माश्रित होने से ज्ञान का कारण स्मर्तव्य विषय नहीं हो सकते। इस पर वादी पुनः शंका करता हैं:-