सूत्र :इन्द्रियान्तरविकारात् II3/1/12
सूत्र संख्या :12
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : प्रायः स्थलों पर किसी पके हुए फल को देखते ही मुंह में पानी भर आता हैं, इससे भी मालूम होता है कि स्मरण करने वाला इन्द्रियों से भिन्न आत्मा है, जिसको फल देखते ही उसका स्वाद स्मरण होकर मुंह में पानी भर आया। यदि इन्द्रियों को ही निरपेक्ष अपने-अपने विषयों का ज्ञाता माना जावे तो आंख के देखने से मुंह में पानी भर आना नहीं हो सकता, क्योंकि कोई इन्द्रिय दूसरे इन्द्रिय के विषय को नहीं जान सकता और न आंख के देखने से रसना के उसका ज्ञान हो सकता है। अब वादी पुनः आक्षेप करता हैं:-