सूत्र :अवयवनाशेऽप्यवयव्युपलब्धेरहेतुः II3/1/10
सूत्र संख्या :10
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : दो आंखो की सिद्धि में एक आंख के नष्ट होने पर दूसरी के शेष रहने की जो युक्ति दी गई है, वह ठीक नहीं, क्योंकि किसी वस्तु के एक भाग के नष्ट होने से उस वस्तु का सर्वनाश नहीं होता। जैसे वृक्ष की शाखाओं के कट जाने से भी वृक्ष का नाश नहीं होता। इसलिए आंख एक ही है, उसके एक अवयव का नाश होने से अवयवी का नाश नहीं हो सकता। इसका उत्तर देते हैं:-