सूत्र :दृष्टा-न्तविरोधादप्रतिषेधः II3/1/11
सूत्र संख्या :11
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : . वृक्ष का दृष्टान्त ठीक नहीं, क्योंकि वृक्ष अवयवी है शाखायें उसका अवयव। इस प्रकार एक आंख दूसरी आंख का अवयव नहीं अर्थात् वे दोनों किसी अवयवी का अवयव है। इस दृष्टान्त विरोध से उनका एक होना सिद्ध नहीं हो सकता। इसके अतिरिक्त नाक की हड्डी निकालने पर भी दोनों आंखों के गोलक भिन्न-भिन्न दृष्ट पड़ते हैं। जिनसे दो आंखों का होना प्रत्यक्ष सिद्ध हैं, जब आंख दो सिद्ध हो गयीं, तब एक के देखे हुए अर्थ की दूसरी से प्रत्यभिज्ञा का होना यह सिद्ध करता है कि उस प्रत्यभिज्ञा का कर्ता इन्द्रियों से भिन्न कोई और ही पदार्थ है और चेतन आत्मा है। फिर उसी की पुष्टि करते हैं:-