सूत्र :सव्यदृष्टस्येतरेण प्रत्यभिज्ञानात् II3/1/7
सूत्र संख्या :7
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : . जिसको बाई आंख से देखा हो उसका दाईं से प्रत्यभिज्ञान होता हैं, इससे सिद्ध है कि आत्मा देह से भिन्न है।
व्याख्या :
प्रश्न -प्रत्यभिज्ञान किसे कहते हैं ?
उत्तर - पहले और पिछले ज्ञान को एक विषय में मिलाने का नाम प्रत्यभिज्ञान है। जब किसी वस्तु को पहले बाईं आंख से देखा हो, अब उसको दाईं आंख से देखकर यह ज्ञान होता है कि यह वही वस्तु हैं, जिसको पहले मैनें बाईं आंख से देखा था। यदि देह से भिन्न कोई आत्मा न माना जावे तो प्रत्यभिज्ञान हो ही नहीं सकता, क्योंकि अन्य के देखे का अन्य को स्मरण नहीं होता। अब इस पर आक्षेप करते हैं:-