सूत्र :तदभावः सात्म-कप्रदाहेऽपि तन्नित्यत्वात् II3/1/5
सूत्र संख्या :5
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : वादी कहता हैं, जब तुम आत्मा को नित्य मानते हो तो उसे हिंसारूप पाप का अभाव सजीव शरीर को जलाने में भी होना चाहिए, क्योंकि तुम्हारे मत में आत्मा तो नित्य है, उसकी कोई हिंसा हो ही नहीं सकती, तो हिंसा का पाप क्योंकर हो सकता हैं ? अतएव दोनों दशाओं में आपत्ति है। देह को आत्मा मानने से तो हिंसा निष्फल हो जाती है और आत्मा की देह से भिन्न मानने में हिंसा हो ही नहीं सकती। अब इसका समाधान सूत्रकार करते हैं: