सूत्र :न विकारधर्मानुपपत्तेः II2/2/46
सूत्र संख्या :46
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : विकार द्रव्य में होता है, शब्द रूप वर्णों में विकार नहीं होता, क्योंकि शब्द गुण है, द्रव्य नहीं, जो किसी दूसरे गुण का सहारा हो सके। इसलिए जो गुण विकार से उत्पन्न होते हैं, वे द्रव्य ही में होते हैं। उसका कारण यह है कि द्रव्य में से (जो परमाणुओं का सड़्घात होता है) कुछ अंश निकलकर और कुछ नये मिलकर एक पृथक रूप धारण कर लेते हैं, उसको विकार कहते है। परन्तु गुण में यह बात नहीं हो सकती, क्योंकि वह संयुक्त या परमाणुओं का सड़्घात नहीं। जब गुण में विकार धर्म हो ही नहीं सकता, तो शाद में विकार किस प्रकार हो सकता है ? अतः आदेश ही मानना ठीक है। इस पर एक और हेतु देते हैं:-