सूत्र :विकारप्राप्ता-नामपुनरापत्तेः II2/2/47
सूत्र संख्या :47
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : जो द्रव्य अपनी वास्तविक दशा से बिगड़ कर विकार होता है, वह फिर अपनी वास्तविक दशा में नहींआ सकता, जैसे दूध से दही मिलकर फिर दूध नहीं हो सकता, परन्तु शब्द में, इसके विपरीत पाया जाता है। जैसे इकार को यकार हो जाता है, फिर यकार को इकार भी हो सकता है। इसलिए शब्द में विकार मानना ठीक नहीं। अब इसका खण्डन करते हैं:-