सूत्र :सुवर्णादीनां पुनरापत्तेरहेतुः II2/2/48
सूत्र संख्या :48
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द सरस्वती
अर्थ : विकृत होकर द्रव्य फिर अपनी वास्तविक दशा में नहीं आता, यह कहना ठीक नहीं, क्योंकि सुवर्ण के आभूषण बनकर फिर उनका सुवर्ण बन जाता है, इसलिए यह हेतु व्यभिचारी है ? अब इसका उत्तर देते हैं:-